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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (13) आ बैल मुझे मार ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = आ बैल मुझे मार


राधिका और सुष्मा जी पड़ोस से लोट आयी थी और जाकर रसोई में दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी, दीन दयाल जी थोड़ा आराम करने के बाद अब अच्छा महसूस कर रहे थे


मानव बच्चों के साथ खेल रहा था, थोड़ी देर बाद वो भी खेल कर थक गया और अंदर आकर लेट जाता है, गर्मी बढ़ने लगी थी, आज का दिन बहुत गर्म था, होता भी क्यूँ नही जून का महीना जो चल रहा था


इसलिए सब धूप और लू लगने के डर से घर के अंदर ही बैठे थे और खाना खा कर लेट गए थे, हवा चलने की साय साय की आवाज़ साफ कानो में सुनाई दे रही थी, दोपहर होते होते सारा गांव वीरान सा हो गया था


बस चारों और धूल उड़ती नज़र आ रही थी, सब अपने अपने घरों में बैठे हुए थे, क्यूंकि लू लग जाने से बहुत बुरी हालत हो जाती है ज्यादातर लोग आम का पन्ना बना कर पीते है लू से बचने के लिए


इसलिए सुष्मा जी ने भी बनाया था और सब ने बड़े मजे से पिया ताज़ा ताज़ा कच्चे आमो से बना खट्टा मीठा आम पन्ना पीने का मजा ही अलग है

राधिका और मानव ने तो पहली बार ऐसा कुछ पिया था जो की उन्हें बहुत पसंद आया था, राधिका का मोबाइल नही बजा क्यूंकि कल रात के बाद आशीष ने भी उसे फ़ोन नही किया और ना ही राधिका ने उसे कोई फ़ोन या मैसेज नही किया


सुषमा जी को कुछ अजीब लगा, उन्होंने पूछना चाहा लेकिन पूछ ना सकी और बात दर गुज़र हो गयी

इसी तरह वो दोपहर, तीसरे पहर में बदल गयी और उसके बाद शाम में, शाम को सबने चाय का आंनद लिया खूब सारी बाते की, मौसम अब सुहाना हो गया था, गर्म हवा ठंडी हो गयी थी, गांव में चहल पहल नज़र आने लगी थी, आज दीन दयाल जी ने भोर के अलावा एक बार भी खेत का चककर नही लगाया, उन्हें कुछ अच्छा महसूस नही हो रहा था


आखिर कार वो शाम रात में बदल गयी और सब खाना खाकर आराम से सो गए, राधिका भी मोबाइल सरहियाने रख कर सो जाती है, आशीष भी अपना मोबाइल एक तरफ रख कर सो जाता है, दोनों ने नाराज़गी के चलते बात नही की


इसी तरह अगला दिन हो जाता है, वही दिनचर्या होती है जो रोज हो रही थी, दीन दयाल जी अच्छा महसूस कर रहे थे, और आज वो भोर के बाद दोबारा खेत पर जाने को तैयार थे वो भी मानव को लेकर


दिन कम बचे थे और मुहावरें ज्यादा इसलिए मानव अपनी किताब अपने दादा के साथ ही ले गया और खेत पर पहुंच कर उसने अगले मुहावरें का ज़िक्र किया जो की था " आ बैल मुझे मार "


दीन दयाल जी से उसने उस मुहावरें का अर्थ पूछा जिसके बाद उन्होंने बताया की इस का अर्थ होता है, जानते बूझ कर मुसीबत को गले लगाना

आओ इस बार में कहानी बता कर नही तुम्हे दिखा कर इस मुहावरें का अर्थ समझाऊंगा, ये कह कर दीन दयाल जी ने मानव का हाथ पकड़ा और उसे कही ले जाने लगे


थोड़ी देर बाद वो एक जगह रुक गए, जहाँ एक आदमी अपनी ज़मीन जोता रहा था, दीन दयाल जी को आता देख वो आदमी अपना काम छोड़ कर उनके नजदीक आकर उन्हें राम राम करने लगा

दीन दयाल जी ने भी उसे राम राम कहकर उसका हाल चाल पूछा

"बस सब भगवान की दया है, सब कुछ अच्छा चल रहा है, बस इस बंजर ज़मीन को छोड़ कर, इसको जोतते जोतते मेरे हाथो में छाले पड़ गए लेकिन ये है कि एक बार भी अच्छी फसल नही ऊगा सकी सस्ते के चककर में मैंने इसे खरीद लिया और " आ बैल मुझे मार " वाली कहावत को सच कर दिया

अब बस सोच रहा हूँ, की किसी भी तरह इसे बेच दू, पिछले एक साल से ज्यादा हो गया लेकिन इस बंजर ज़मीन ने सिवाय नुकसान के कुछ नही दिया " सामने खड़े आदमी ने कहा

"कितना मना किया था हम सब ने तुमसे की ये ज़मीन मत खरीदो, लेकिन तुमने एक ना सुनी, सस्ते के चककर में बंजर जमीन खरीद ली, यहां बस घर बन सकता है, ये जमीन बंजर है यहाँ कुछ उग नही सकता, लेकिन तुमने ज़िद्द पकड़ रखी थी की तुम इस जमीन पर खेती करके दिखाओगे इसलिए कहते है बड़े ज़ब कुछ कहा करे तो उसे मान लेना चाहिए, क्यूंकि अनुभव भी कोई चीज होती है " दीन दयाल जी ने कहा


"ठीक कहा आपने दीनू भैया, मत पर परदे पड़ गए थे, जो आप सब के मना करने के बावज़ूद अपनी जमीन बेच कर इस जमीन का सौदा कर लिया, लेकिन अब आगे से ध्यान रखूंगा, देख भाल कर सौदा करूंगा ताकि अगली बार किसी मुसीबत को अपने गले ना लगा सकूँ और " आ बैल मुझे मार " वाली कहावत को अपने ऊपर सिद्ध ना कर सकूँ " सामने खड़े आदमी ने कहा


दीन दयाल जी मुस्कुराते हुए मानव को उस आदमी की पूरी दास्तान सुनाते हुए अपने खेत पर आन पहुचे


मुहावरों की दुनिया हेतु 

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11 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Mar-2023 07:38 AM

वाह मुहावरों पर बेहतरीन कहानी

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शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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बहुत खूब

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